Essence of Mahashivratri PDF

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ESSENCE OF MAHASHIVRATRI – GOOD NEWS !!

GOD
HAS ARRIVED, HIS BRIEF INTRODUCTION

SHIV – A POINT OF LIGHT HIS MESSAGE PARAMDHAM – SOUL WORLD

 NAME: SHIV (also called as BHAGWAN, GOD, ALLAH, JEHOVAH, YAHWEH, IK


ONKAAR in different religions or SUPREME SOUL/CONSCIOUSNESS in Spirituality)
 ADDRESS: PARAMDHAM (also called as Brahmand, Soul World)
 OCCUPATION: World Transformation (through Self Transformation)

 HIS REFERNCE IN DIFFERENT RELIGIONS:


 HINDUS worship him as SHIV JYOTIRLING (Shiv-name, Jyoti/Light-Form, Ling-
Symbol)
 MUSLIMS refer to him as ALLAH and say ALLAH Noor hai (Noor means Light)
 JESUS said “God is ONE, God is TRUTH, God is LIGHT. I am son/Messenger of God.”
[Jyoti/Noor/Light])
 GURU NANAK said “Ik Onkaar Satnaam Kartaa Purakh Nirbhau Nirvair Akaal Moorat
Ajoonee Saibhan Gur Prasaad
SAI BABA OF SHIRDI said “Sabka Maalik Ek” (Finger pointed upwards)

HIS MESSAGE: Oh My Dear Sweet Children! You have been


calling me by many names. In this age of utter darkness when
there is chaos everywhere and all hope seems lost, when the
challenges of the world seem to have no end, when sorrow,
peacelessness and unrighteousness is the norm of the day, in
such extreme dark night of Kaliyug, I have come to liberate
you as promised in Srimad Bhagavad Geeta and take you to
my abode of Peace, Tranquility, Bliss and Abundance.
Oh Dear Children! You are just like me, a Point of Light –
Soul, but, you have forgotten your true self. Now, just keep
thinking of me in my original form which is Point of Light
and all your lost peace, love and powers will return.

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महाशिवरात्रि का रहस्य - भगवान आ चुके है , उनका पररचय।

ज्योनत ब ि
ं ु सशव िरमधाम में सशव ज्योनतसलिंग सशव और शंकर अलग है

“यदा यदा हह धममस्य ग्लाननभमवनि भारि।


अभ्युत्थानमधममस्य िदात्मानं सज
ृ ाम्यहम ् ॥४-७॥
पररिाणाय साधूनां ववनािाय च दष्ु कृिाम ् ।
धममसंस्थापनाथामय सम्भवाशम युगे युगे ॥४-८॥ “
जब-जब भारि में धमम की अनि ग्लानन होिी है , िब-िब अधमम का ववनाि कर धमम की पन
ु ःस्थापना करने मैं इस धरा
पर अविररि होिा हूूँ ।

ईश्वरीय र्न्िे श – “मेरे मीठे -मीठे बच्चों, मैं शिव हूूँ। मैं एक ज्योनि त्रबंद ु स्वरुप हूूँ। मेरा घर पांच ित्वों की इस दनु नया से
पार िान्तिधाम / परमधाम है। मैं वहाूँ का रहने वाला हूूँ। िम
ु आत्माएं, जो मेरे ही बच्चे हो, िम
ु भी मेरी िरह ही ज्योनि त्रबंद ु
स्वरुप हो। िम
ु भी परमधाम मे मेरे साथ ही रहिी थी। िम
ु , इस सन्ृ ष्ि रं गमंच पर जो ड्रामा चल रहा है , उसमें अपना पािम बजाने
ऊपर से यहाूँ ननचे आयी हो। परतिु पािम बजािे-बजािे िम
ु अपना असली स्वरुप भल
ू गयी और अपने घर को भी भल
ू गयी। मझ
ु े,
अपने असली स्वरुप को और अपने घर को भल
ू ने के कारण िम
ु अभी बहुि ही दःु खी और अिांि हो गयी हो। िम
ु ने कई जतमों से
मझ
ु े पक
ु ारा है । अनेक नामों से भी पक
ु ारा; ईश्वर, अल्लाह, गॉड, येहोवा, इक ओंकार। िम्
ु हारी पक
ु ार सन
ु कर मैं अब इस साकार
सन्ृ ष्ि पर अविररि हुआ हूूँ और िम्
ु हे पावन बना, सख
ु -िांनि का वसाम दे कर वावपस घर ले जाना आया हूूँ। मैं सवमव्यापी
(omnipresent) नहीं हूूँ।
हे आत्मन! स्वयं को पहचानो, मझ
ु े पहचानो और आकर मझ
ु से अपना सख
ु -िांनि का वसाम लो। अब ये ड्रामा परू ा होने को है । मैं
आया ही हूूँ कशलयग
ु की इस घोर अूँधेरी राि में न्जसकी यादगार में िम
ु महाशिवरात्रि का पवम मना रहे हो। मैं हर कल्प के अंि में
आिा ही हूूँ कशलयग
ु ी सन्ृ ष्ि को बदल नयी सियग
ु ी सन्ृ ष्ि रचने जहाूँ सम्पण
ू म सख
ु , िांनि और सम्पतनिा होगी। कोई रोग, िोक,
दःु ख नहीं होगा। बस िम्
ु हे अपने को आत्मा समझ मैं जो हूूँ, जैसा हूूँ (त्रबंद ु रूप) उसी यथाथम रीनि मझ
ु े याद करना है , िो िम्
ु हारी
खोई हुई सख
ु -िांनि, िन्तियां िम्
ु हे वावपस शमल जाएूँगी।“
िरमात्मा सशव के अवतरण दिवर् को सशव राबि के रूि में मनाते है । यह राबि शब्ि अज्ञान अंधधयारे का प्रनतक है । िरमात्मा का अवतरण धमस
ग्लानन के र्मय होता है और वतसमान र्मय धमस ग्लानन का र्मय स्िष्ट दिखाई िे रहा है । अतिः अभी ही सशव िरमात्मा के अवतरण का
र्मय है । उनका दिव्य कतसव्य, जजर् कारण मंदिरों में उनकी िूजा सशवसलंग के रूि में होती है , वह है र्जृ ष्ट िररवतसन। ये कसलयुगी र्जृ ष्ट को
िल एक दिव्य र्तयग
ु ी र्जृ ष्ट की स्थािना जहााँ मनष्ु य आत्माओं में िै वी गण
ु होने के कारण वह िे वता कहलाएंगी। वह िै वी र्ंस्कार िरमात्मा
हम आत्माओं को अभी ही धारण करा रहे है राजयोग के द्वारा। तो चसलए हम भी िरमात्मा के इर् दिव्य कायस में र्हयोगी न अिना भाग्य
ना ले और नयी र्तयुगी र्जृ ष्ट में िे व आत्माएं न फिर र्े अिना र्ख
ु , शांनत का वर्ास उनर्े िा ले। आि र्भी को र्हर्स हादिस क ननमंिण है ।
आओ स्वयं को िले और पवश्व िररवतसन के कायस में अिना र्हयोग िे ।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय पवश्वपवद्यालय


7 दिन का ननिःशल्
ु क राजयोग मेडिटे शन कोर्स सर्खने के सलए अिने नज़िीकी ब्रह्माकुमारीज़ र्ेवा केंद्र र्े र्ंिकस करे

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