Academia.eduAcademia.edu

Prakrit muktak sahitya ka Itihas Dr. Anand Kumar Jain (Summary)

प्राकृत मक् ु तक-साहित्य का इततिास डॉ. आनन्द कुमार जैन अससस्टें ट प्रोफेसर, जैन-बौद्धदर्शन विभाग कार्ी हिन्द ू विश्विद्यालय मो. 09571660887, [email protected] साहित्य की गद्य और पद्य दो विधाएं िैं और इसमें पद्य के भेद काव्य, चंपू आहद के साथ मुक्तक काव्य की भी संकल्पना िै । मुक्तक काव्य ककसी विषय से बंधा िुआ निीं िोता िै अवपतु कवि के मन में जो विविध धारा बिती िै तदनुरूप िी िि पद की रचना करता चला जाता िै । इनमें विषय की अपेक्षा भी लौककक और पारलौककक का भेद स्पष्ट िै और यि समस्त विचारधाराएं प्राचीन काल से िी साहित्य में प्राप्त िोती िैं। ककसी भी विधा का प्रारं भ धीरे -धीरे िी िोता िै जो बाद में एक व्यापक रूप लेकर अलग विधा के नाम से साहित्य में पथ ृ क् पिचान बनाता िै । इसी प्रकार का प्रारं भ मुक्तक काव्य का भी िुआ जो बाद में प्रारं भ में ग्रंथों के मध्य में छुटपुट में प्रयोग िोते-िोते समय के साथ एक पथ ृ क् विधा के रूप में विकससत िोकर मुक्तक काव्य के नाम से जाना जाने लगा। प्रारं सभक दौर में गद्य साहित्य के मध्य में प्रयक् ु त िो रिे पद्यों के रूप में मुक्तक काव्य अश्स्तत्ि में आने लगा बाद में प्राकृत एिं अन्य भाषाओं में मुक्तक का जो विकास हदखता िै िि सदै ि कथाओं और कल्पनाओं से संबद्ध रिा िै । मक् ु तक संक्षेप में बात करने की, विषय प्रस्तत ु ीकरण की कला िै इससलए यि किना उपयुक्त िोगा की एक-एक मुक्तक अपने आप में संपूणश कथा का सार िै और उस असभव्यश्क्त को व्यक्त करने में सक्षम िोता िै श्जससे पाठक कथ्य को समझ सके। प्राकृत भाषा में मुक्तक काव्य के विकास की परं परा का प्रारं भ आगम साहित्य में दृश्ष्टगत िोता िै इसमें उपदे र् की मूल बात को सिज पदों में प्रस्तत ु करना आचायश का असभश्प्सत कायश रिा िै । ससद्धांततक चचाश , िैराग्य घटनाएं, प्रकृतत िणशन, गांि का सजीि चचत्रण, श्ंग ृ ार कथन, नीततगत चचाश आहद विषयों को समेटे िुए यि साहित्य िोता िै । कवि आनंदिधशन ने मुक्तक काव्य की पररभाषा में जो तथ्य प्रस्तुत ककया िै उससे मुक्तक काव्य की रचना का संपूणश श्ेय प्राकृत भाषा को िी समलता िै । गाथासप्तर्ती इस विधा का अतत-प्रससद्ध ग्रंथ िै ककं तु इसकी भाषा की पूणशता, प्रोढ़ता एिं कवि के स्ियं ककए गए उद्बोधन से यि स्पष्ट िोता िै की प्राकृत में इससे पि ू श भी इस प्रकार की अनचगनत रचनाएं रिी िोंगी। मनोविज्ञान की दृश्ष्ट से मन सरलता से कहठनाई की ओर अग्रसर िोता िै इससलए यि किना उचचत िी िोगा कक प्रारं भ में जब कोई काव्य सलखने की चेष्टा करता िै तब उसमें विषय की सभन्नता एिं भाषा का सरल प्रयोग िोना दे खा जाता िै ; अतः काव्य की विधा में सिशप्रथम मुक्तक काव्य िी रचे गए िो ऐसा मानना ज्यादा उचचत प्रतीत िोता िै | चूँूकक मुक्तक काव्य में प्रत्येक पद्य स्ितंत्र िोता िुआ सभन्नाथशक की अनुभूतत कराता िै जो इसके मक् ु त और स्ितंत्र-व्यश्क्तत्ि को असभव्यक्त करता िै | अतः इसे मक् ु तक काव्य किना उचचत िै । समय के साथ-साथ प्रत्येक काव्य रचनाकार अपनी र्ैली में प्रिीण िोता चला जाता िै और िि कुछ असभनि प्रयोग भी करता िुआ हदखता िै । श्जनका समय के साथ नामकरण िोता चला गया| आगम और धरसेन के ग्ंथों मे प्राप्त मक् ु तक और सभ ु ावषतों का संकलन ककया िै । िैसे द्िाश्यकाव्य, सेतुबंध, लीलािईकिा, मच् ृ अन्य ग्ंथों मे भी स्ितंत्र ृ छकहटकं प्रभत मुक्तक समलते िैं। मक् ु तक साहित्य के विस्तत ृ इततिास को समझने के सलए छान्दस परं परा, उसके पवचात की िैहदक परं परा, पाली मुक्तक काव्य परं परा, संस्कृत मक् ु तक काव्य परंपरा, प्राकृत मुक्तक काव्य परं परा, अपभ्रंर् मुक्तक काव्य परं परा, हिंदी मुक्तक काव्य परं परा यिां तक कक पावचात्य साहित्य में मुक्तक की जो श्स्थतत िै उसका भी अध्ययन अपेक्षक्षत िै एिं क्षेत्र, काल का मक् ु तक साहित्य पर ककस प्रकार प्रभाि पडा ऐसे विसभन्न पक्षों पर स्तरीय चचंतन, मनन और र्ोध के बाद इस पर अचधकारपूिशक कुछ कायश ककया जा सकता िै ।