शोध पत्र by Pawak Agrawal
विद्यावार्ता , 2024
शिक्षा संपूर्ण राष्ट्र के विकास का आधार स्तंभ है, यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ सभ्यता... more शिक्षा संपूर्ण राष्ट्र के विकास का आधार स्तंभ है, यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ सभ्यता, संस्कृति या प्रथा के उत्थान को भी प्रोत्साहित करती रहती है। किसी भी राष्ट्र की भौतिक एवं अभौतिक संपदा में वृद्धि शिक्षा के माध्यम से ही होती है। यह समाज के भविष्य की आधारशिला है, इसी आधारशिला को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का आगमन हुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करती है तथा बच्चों की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को परिवर्तनकारी पहल के रूप में प्रस्तुत करती है। वर्तमान समाज विविध आवश्यकताओं एवं चुनौतियों से व्याप्त है, जिसने बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया को भी प्रभावित किया है। 21वीं सदी के समाज की आवश्यकताओं एवं चुनौतियों के समाधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक परिवर्तनकारी पहल है। इस नीति में 21वीं सदी के शिक्षण कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हुए बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया को रोचक व प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के आधुनिक कौशल व विविध शिक्षण प्रौद्योगिकियों पर दृष्टिपात कर उन्हें शिक्षण प्रक्रिया में प्रयोग करने का सुझाव दिया गया है। (राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, खंड 24.4)। वर्तमान समय के अनुरूप तकनीकी ज्ञान एवं अतीत की ज्ञान परंपरा का एकीकरण आवश्यक है। विद्यार्थियों में शिक्षा को आलोचनात्मक, रचनात्मक, अन्वेषणात्मक तथा क्रियात्मक स्वरूप प्रदान करने में 21वीं सदी के शिक्षण कौशल सक्षम हैं। वर्तमान समाज में डिजिटल अधिगम तथा नवोंन्मेशी शिक्षण कौशल की महत्ता संपूर्ण शिक्षणतंत्र पर दृष्टिगोचर है। 21वीं सदी के शिक्षण कौशल विद्यार्थियों में खेल आधारित शिक्षा, स्वयं करके सीखना, आनुभाविक, आलोचनात्मक, रूपांतरित तथा सहयोगपूर्ण शिक्षण जैसे संप्रत्ययों को विकसित करता है। यह कौशल बच्चों की अधिगम प्रक्रिया को बहुआयामी दृष्टिकोण की ओर उन्मुख करते हैं। शिक्षक इन शिक्षण कौशलों का प्रयोग कर बच्चों की शैक्षणिक प्रक्रिया में और अधिक निपुणता हासिल कर सकता है। यह शोध पत्र 21वीं सदी के शिक्षण कौशल को संदर्भित कर विद्यार्थियों की शिक्षण व्यवस्था में इन कौशलों की उपादेयता क्या है, इस पर भी प्रकाश डालने का प्रयास करता है।
International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com, Jan 5, 2023
महर्षि अरविंद भारत देश के बंगाल राज्य के महानतम दार्शनिकों में से एक हैं। इनका दर्शन समग्र शिक्षा... more महर्षि अरविंद भारत देश के बंगाल राज्य के महानतम दार्शनिकों में से एक हैं। इनका दर्शन समग्र शिक्षा का दर्शन है, जो यथार्थ की सत्ता तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ मानव के आध्यात्मिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित करता है। यह मध्यमार्गी होने के कारण जीवन, आत्मा, अस्तित्व व सार सबके प्रति गूढ़ता के भाव को प्रदर्शित करता है। महर्षि अरविंद घोष के शैक्षिक एवं दार्शनिक विचार वर्तमान मानव को अंधकार के गर्त से निकालकर प्रकाश के मार्ग पर अग्रसर करने हेतु प्रेरणास्रोत के रूप में निहित हैं। उनका मानना था कि बालक दिव्यशक्तियों का पुंज है जो अपने भीतर अनंत शक्ति धारण किए हुए है। महर्षि अरविंद का शैक्षिक दर्शन विद्यार्थियों को जगत की वास्तविकताओं के साथ ही आत्मविकास की ओर प्रवृत्त करता है जो कि आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत उपयोगी व सार्थक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकता है। महर्षि अरविंद बीसवीं शताब्दी के ओजपूर्ण विचारधारा एवं पुनर्जागरण के व्यक्ति माने जाते हैं। वह एक अद्भुत विचारक थे, जिन्होंने सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास को गहनता से अध्ययन किया। उनके शैक्षिक एवं दार्शनिक विचार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षक, शिक्षार्थी, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, अनुशासन सभी को प्रभावित करता है। महर्षि अरविंद का सिद्धांत बच्चे के सर्वांगीण विकास, अनिवार्य शिक्षा, आजीवन एवं सतत शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, रचनात्मकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अध्ययन, साहित्य आदि सभी के संबंध में वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है।
International Journal of Creative Research Thoughts (IJCRT) www.ijcrt.org, 2023
स्वामी विवेकानंद जी वैश्विक पटल पर सदैव युगदृष्टा तथा युगसृष्टा के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे भार... more स्वामी विवेकानंद जी वैश्विक पटल पर सदैव युगदृष्टा तथा युगसृष्टा के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे भारतीय चिंतक जिन्होंने मानव जाति को सदैव तमस के गर्त से निकालकर प्रकाश के मार्ग पर अग्रसर होने हेतु प्रेरित किया। स्वामी जी मानव निर्माण के लिए एक दिव्य पुंज की तरह सदा प्रकाशमान रहेंगे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्वामी जी के विचार मानव जीवन में प्रेरणा स्रोत की तरह ओजवान हैं जो कि मानव को अनैतिकता के भंवर से निकालकर उसके जीवन में आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रकाश को बिखेरता है। स्वामी विवेकानंद इस युग के प्रथम विचारक हैं जिन्होंने हम सभी को अपने देश की आध्यात्मिक, नैतिक, चारित्रिक श्रेष्ठता से अवगत कराया और साथ ही साथ पाश्चात्य देशों की भी अपने भारत देश की भौतिक श्रेष्ठता से परिचित कराया। स्वामी जी को भविष्य तथा वर्तमान के मध्य की एक फलदायी संयोजक कड़ी के रूप में माना जा सकता है। स्वामी जी एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने सदैव मानव निर्माणकारी शिक्षा की वकालत की है। उनका कहना था कि शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य को उसके जीवन संघर्षों के लिए तैयार करे तथा उसमें अपार संभावनाओं हेतु साहस भर दे। जिससे वह जीवन की अनगिनत चुनौतियों का पूरे सकारात्मक भाव से डटकर सामना कर सके। उनके अनुसार मानव निर्माणकारी शिक्षा के साथ-साथ उसमें मानवीय गुणों, साहस, धैर्य, आत्मविश्वास, व्यावसायिक कुशलता, अंतर्निहित पूर्णता आदि का अद्भुत समावेश भी होना चाहिए। शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है, जिससे मनुष्य का पुनर्निर्माण किया जा सकता है। स्वामी जी कहते हैं मनुष्य ऐसा हो जिसमें अदम्य साहस, उत्कृष्ट इच्छाशक्ति तथा मनुष्य को ईश्वर का मंदिर बनाने की क्षमता विद्यमान हो। स्वामी विवेकानंद जी के विचारों में मनुष्यता का मूल समाहित है। इनका मानना था कि सभी मानवों में ईश्वर का अस्तित्व है, इसीलिए प्रत्येक मानव ईश्वर की एक अद्भुत रचना है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इनके विषय में कहा है कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद जी का अध्ययन कीजिए। उनमें सभी कुछ सकारात्मक है, नकारात्मक कुछ भी नहीं। आधुनिक युग की मांग को ध्यान में रखते हुए स्वामी जी ने कहा था कि “खाली पेट धर्म नहीं होता है।“ मानव को शिक्षा प्रदान करने हेतु शिक्षा का स्वरूप कैसा हो ? प्राचीन शिक्षा वर्तमान समय में कैसे उपयोगी हो सकती है? प्रस्तुत शोध पत्र मानव मूल्यों, मानव निर्माण पर आधारित शिक्षा का स्वरूप तथा स्वामी विवेकानंद जी के ओजस्वी विचारों की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उपादेयता पर प्रकाश डालता है।
International Journal of Creative Research Thoughts (IJCRT) www.ijcrt.org, 2023
डिजिटल विभाजन व्यक्तियों, समुदायों और देशों के मध्य सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) तक पहुँ... more डिजिटल विभाजन व्यक्तियों, समुदायों और देशों के मध्य सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) तक पहुँच और उसके उपयोग के संदर्भ में अंतर को संदर्भित करता है। इस वैचारिक अध्ययन का उद्देश्य डिजिटल विभाजन की इस परिघटना के कारणों, परिणामों और संभावित समाधानों का पता लगाना है। यह अध्ययन डिजिटल विभाजन से संबंधित वर्तमान साहित्य और सिद्धांतों का अवलोकन कर इस जटिल मुद्दे की बहुआयामी प्रकृति को उजागर करने का प्रयास करता है। अध्ययन सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, भौगोलिक स्थान और बुनियादी ढांचे की असमानताओं सहित डिजिटल विभाजन में योगदान देने वाले कारकों की पहचान और यह जाँच करने का प्रयास करता है कि ये कारक आईसीटी तक पहुँचने में असमानताएं कैसे पैदा करते हैं तथा यह सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए व्यक्तियों के अवसरों को कैसे सीमित करता है। डिजिटल विभाजन को बढ़ाने या कम करने में क्या सरकारी नीतियों और तकनीकी प्रगति की भी भूमिका होती है। इसके अतिरिक्त अध्ययन सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक प्रभावों पर बल देते हुए, डिजिटल विभाजन के परिणामों की व्याख्या करता है और यह जानने करने का प्रयास करता है कि आईसीटी तक सीमित पहुंच वाले व्यक्तियों और समुदायों को डिजिटल साक्षरता प्राप्त करने, डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग लेने, ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंचने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में संलग्न होने में चुनौतियों का सामना क्यों करना पड़ता है। डिजिटल विभाजन को संदर्भित करने के लिए अध्ययन विभिन्न स्तरों पर संभावित समाधानों की पहचान करने का प्रयास करता है। यह समावेशी नीतियों, बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश, निम्न गुणवत्ता की कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों के महत्व पर जोर देता है। अध्ययन सरकारों, नागरिकों, सामाजिक संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग की आवश्यकता पर भी बल देता है ताकि आईसीटी तक समान पहुँच सुनिश्चित की जा सके और डिजिटल समावेशन को बढ़ावा दिया जा सके। सामाजिक समानता, समावेशी विकास और वैश्विक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल विभाजन को उल्लिखित करने व संज्ञान में लाने की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करता है।
International Journal of Novel Research and Development (www.ijnrd.org), 2023
Procrastination, characterized by the act of delaying or deferring tasks, presents a pervasive is... more Procrastination, characterized by the act of delaying or deferring tasks, presents a pervasive issue that obstructs progress and achievement across various domains (Smith, 2022; Brown & Johnson, 2021). The National Education Policy 2020 (NEP 2020) in India embodies a transformative vision for the education system, aiming to address long-standing challenges and promote comprehensive development (Thomas et al., 2020; Singh & Kapoor, 2019). However, the effective implementation of NEP 2020 faces obstacles resulting from procrastination at different levels.
This research study examines the phenomenon of procrastination in the context of implementing NEP 2020 and explores its implications for educational reforms. Drawing upon a qualitative research design, the study employs interviews and surveys with key stakeholders engaged in the implementation process of NEP 2020. The findings shed light on various factors that contribute to procrastination, including bureaucratic complexities, resistance to change, and unclear policy guidelines.
The consequences of procrastination during the implementation process lead to delays in realizing the intended benefits of NEP 2020, thereby impeding progress in the education sector. To address this challenge, it is crucial to develop strategies that foster effective implementation and mitigate tendencies for procrastination. These strategies encompass cultivating a culture of accountability, providing adequate resources and support, and enhancing communication and coordination among stakeholders (Robinson, 2023; Kumar & Patel, 2022).
Additionally, establishing robust monitoring and evaluation mechanisms is indispensable for tracking progress and identifying potential barriers in the implementation process (Gupta & Sharma, 2021; Jain & Mishra, 2020). This research offers valuable insights into the challenges posed by procrastination in the implementation of NEP 2020. By effectively addressing these challenges, policymakers, educational institutions, and stakeholders can collaboratively work towards successful implementation, ultimately leading to positive transformations in the Indian education system.
Shiksha Shodh Manthan, 2023
वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम क्षेत्र में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी (आईसीटी) के महत्व को अस्वीकार ... more वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम क्षेत्र में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी (आईसीटी) के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। शिक्षण में तकनीकी के प्रयोग की भूमिका अहम है। जैसे आभाषी कक्षाएं, आभाषी प्रयोगशाला, आभाषी सम्मेलन, मिश्रित अधिगम इत्यादि। भारत में शिक्षण और अधिगम व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने हेतु आईसीटी, पथ प्रदर्शक प्रतीत हो रहा है। आईसीटी सभी बच्चों को अपनी क्षमता के अनुरूप सीखने के समान अवसर प्रदान करता है। शिक्षक भी आईसीटी का उपयोग करके प्रभावशाली विधियों से शिक्षण कार्य कर रहे हैं, जो विद्यार्थियों के स्वर्णिम तथा उज्ज्वल भविष्य का घोतक बन सकता है। इतनी उपयोगिता होने के बावजूद भी विभिन्न परिस्थितियों वश आईसीटी का अपर्याप्त ज्ञान, शिक्षक व शिक्षार्थी हेतु एक चुनौती बन जाता है जो कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को नकारात्मक रूप से भी प्रभावित कर सकने की क्षमता रखता है। वर्तमान समय में शिक्षा का कोई भी पक्ष तकनीकी से अछूता नहीं रह गया है। आईसीटी, बच्चों की अधिगम व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ उनके व्यवहार तथा कार्य करने के तरीकों में अभूतपूर्व परिवर्तन प्रतिबिंबित कर रहा है। तकनीकी में, परंपरागत शिक्षण व्यवस्था में परिवर्तन तथा वैश्विक पटल पर शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने की क्षमता विद्यमान है। वर्तमान समय में प्रौद्योगिकी कौशल के द्वारा मानव में प्रच्छन्न क्षमता या प्रतिभा को अग्रसरित करने का प्रयास किया जा रहा है। आईसीटी अधिगम प्रक्रिया को किस प्रकार से प्रभावशाली बना रही है ? शिक्षण कार्य में शिक्षक को आईसीटी कैसे प्रभावित कर रहा है ? आधुनिक शैक्षिक आवश्यकताओं के संदर्भ में आईसीटी किस प्रकार लाभकारी व चुनौतीपूर्ण है ? आदि जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों के उत्तर की तितीक्षा हेतु इस लेख को संदर्भित किया गया है।
संपादकीय लेख by Pawak Agrawal
लाइफ दस्तक: राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक, 2023
काव्य रचनाएँ by Pawak Agrawal
लाइफ दस्तक: राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक 02(32), 29 April 2023, 2023
Book Chapters by Pawak Agrawal
BLUEROSE PUBLISHERS, 2024
The Assessment of positive thinking in education underscores its significant impact on student we... more The Assessment of positive thinking in education underscores its significant impact on student well-being and academic achievement. Positive thinking, characterised by optimism, resilience, appreciation, and a growth mindset, plays a crucial role in fostering a supportive learning environment conducive to the success of all students. By embracing the principles of positive psychology and incorporating them into educational strategies, stakeholders can foster an atmosphere of optimism and resilience, leading to increased student motivation, involvement, and overall satisfaction with the learning process.
Looking ahead, it is essential to adopt a comprehensive approach to promoting positive thinking in education. Educators and policymakers should prioritise efforts aimed at encouraging optimism, resilience, and emotional intelligence while addressing systemic challenges and advocating for equity within educational institutions. Providing ongoing professional development opportunities for educators can enhance their ability to nurture positive relationships, promote students' socio-emotional growth, and establish inclusive learning environments. Integrating mindfulness techniques and fostering positive connections among students, teachers, and stakeholders can further enrich the educational journey and contribute to students' overall well-being. By promoting a culture of positivity and growth within educational settings, stakeholders can empower students to realise their full potential and develop the resilience necessary to navigate future challenges as lifelong learners.
Papers by Pawak Agrawal
Zenodo (CERN European Organization for Nuclear Research), May 4, 2023
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शोध पत्र by Pawak Agrawal
This research study examines the phenomenon of procrastination in the context of implementing NEP 2020 and explores its implications for educational reforms. Drawing upon a qualitative research design, the study employs interviews and surveys with key stakeholders engaged in the implementation process of NEP 2020. The findings shed light on various factors that contribute to procrastination, including bureaucratic complexities, resistance to change, and unclear policy guidelines.
The consequences of procrastination during the implementation process lead to delays in realizing the intended benefits of NEP 2020, thereby impeding progress in the education sector. To address this challenge, it is crucial to develop strategies that foster effective implementation and mitigate tendencies for procrastination. These strategies encompass cultivating a culture of accountability, providing adequate resources and support, and enhancing communication and coordination among stakeholders (Robinson, 2023; Kumar & Patel, 2022).
Additionally, establishing robust monitoring and evaluation mechanisms is indispensable for tracking progress and identifying potential barriers in the implementation process (Gupta & Sharma, 2021; Jain & Mishra, 2020). This research offers valuable insights into the challenges posed by procrastination in the implementation of NEP 2020. By effectively addressing these challenges, policymakers, educational institutions, and stakeholders can collaboratively work towards successful implementation, ultimately leading to positive transformations in the Indian education system.
संपादकीय लेख by Pawak Agrawal
काव्य रचनाएँ by Pawak Agrawal
Book Chapters by Pawak Agrawal
Looking ahead, it is essential to adopt a comprehensive approach to promoting positive thinking in education. Educators and policymakers should prioritise efforts aimed at encouraging optimism, resilience, and emotional intelligence while addressing systemic challenges and advocating for equity within educational institutions. Providing ongoing professional development opportunities for educators can enhance their ability to nurture positive relationships, promote students' socio-emotional growth, and establish inclusive learning environments. Integrating mindfulness techniques and fostering positive connections among students, teachers, and stakeholders can further enrich the educational journey and contribute to students' overall well-being. By promoting a culture of positivity and growth within educational settings, stakeholders can empower students to realise their full potential and develop the resilience necessary to navigate future challenges as lifelong learners.
Papers by Pawak Agrawal
This research study examines the phenomenon of procrastination in the context of implementing NEP 2020 and explores its implications for educational reforms. Drawing upon a qualitative research design, the study employs interviews and surveys with key stakeholders engaged in the implementation process of NEP 2020. The findings shed light on various factors that contribute to procrastination, including bureaucratic complexities, resistance to change, and unclear policy guidelines.
The consequences of procrastination during the implementation process lead to delays in realizing the intended benefits of NEP 2020, thereby impeding progress in the education sector. To address this challenge, it is crucial to develop strategies that foster effective implementation and mitigate tendencies for procrastination. These strategies encompass cultivating a culture of accountability, providing adequate resources and support, and enhancing communication and coordination among stakeholders (Robinson, 2023; Kumar & Patel, 2022).
Additionally, establishing robust monitoring and evaluation mechanisms is indispensable for tracking progress and identifying potential barriers in the implementation process (Gupta & Sharma, 2021; Jain & Mishra, 2020). This research offers valuable insights into the challenges posed by procrastination in the implementation of NEP 2020. By effectively addressing these challenges, policymakers, educational institutions, and stakeholders can collaboratively work towards successful implementation, ultimately leading to positive transformations in the Indian education system.
Looking ahead, it is essential to adopt a comprehensive approach to promoting positive thinking in education. Educators and policymakers should prioritise efforts aimed at encouraging optimism, resilience, and emotional intelligence while addressing systemic challenges and advocating for equity within educational institutions. Providing ongoing professional development opportunities for educators can enhance their ability to nurture positive relationships, promote students' socio-emotional growth, and establish inclusive learning environments. Integrating mindfulness techniques and fostering positive connections among students, teachers, and stakeholders can further enrich the educational journey and contribute to students' overall well-being. By promoting a culture of positivity and growth within educational settings, stakeholders can empower students to realise their full potential and develop the resilience necessary to navigate future challenges as lifelong learners.