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बैप्टिस्ट चर्च

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एक बैप्टिस्ट गिरिजाघर।

बैप्टिस्ट चर्च उन इसाइयों के मत को कहते हैं जो यह मानते हैं कि "विश्वासी लोगों" का बपतिस्मा (बिलीभर्स बैप्टिज्म) होना चाहिये न कि अबोध बच्चों का (इन्फैन्त बैप्टिज्म)।[उद्धरण चाहिए]

सन् १५२५ ई. में स्विट्ज़रलैंड में एक संप्रदाय का प्रचलन हुआ जिसमें माना जाता था कि बच्चों को दिया हुआ बपतिस्मा अमान्य है, अत: उसके अनुयायी पुन: बपतिस्मा लेते थे। इसलिए उन्हें अनाबैप्टिस्ट (पुन: बपतिस्मा देनेवाले) का नाम दिया गया। इस संप्रदाय की दो शाखाएँ थीं, एक उग्रवादी (जो बलप्रयोग का भी सहारा लेती थी, शीघ्र ही विलुप्त हो गई) और दूसरी शांतिवादी। मेन्नो सिमंस (सन् १४९६-१५६१) के नेतृत्व में शांतिवादी अनाबैप्टिस्ट संप्रदाय का काफी प्रचार हुआ। इससे उसके सदस्य प्राय: मेन्नोनाइट कहलाते हैं। आजकल उसके अनुयायी चार लाख से अधिक हैं। अमरीका में उसके सदस्य लगभग दो लाख हैं।

सन् १६०२ ई. में ऐंग्लिकन राजधर्म अस्वीकार कर कुछ अंग्रेज जान स्मिथ के नेतृत्व में हॉलैंड में बस गए। वहाँ वे मेन्नोनाइट संप्रदाय से प्रभावित होकर बच्चों का बपतिस्मा अस्वीकार करने लगे। सन् १६१२ ई. में टामस हेलविस के नेतृत्व में इंग्लैंड लौटकर उन्होंने बैप्टिस्ट चर्च की स्थापना की। वयस्क होने पर ही बपतिस्मा की मान्यता के अतिरिक्त इस चर्च में बाइबिल को धर्म का एकमात्र आधार माना जाता है तथा इसपर बहुत बल दिया जाता है कि सरकार को नितांत धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए। विलियम कैरी (Carey) के धर्मप्रचार आंदोलन के फलस्वरूप सन् १७९२ ई. में बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी की स्थापना हुई जिसने मिशन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य किया है। ब्रिटेन में आजकल तीन लाख से अधिक बैप्टिस्ट चर्च के वयस्क सदस्य हैं। अमरीका में बैप्टिस्ट चर्च की स्थापना रोजर विलियम्स (१६४०-१६८३) द्वारा हुई थी। वहाँ उसे अपूर्व सफलता मिली है, आजकल उसकी सदस्यता दो करोड़ से भी अधिक है।

एडवेंटिस्ट (adventist) संप्रदाय का प्रचलन १९वीं शताब्दी पूर्वार्ध में हुआ था, उस संप्रदाय से सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट (seventh day adventist) सन् १८६० ई. में अलग हो गए। बपतिस्मा के विषय में उनका सिद्धांत बैप्टिस्ट चर्च के अनुसार है। इसके अतिरिक्त वे इतवार के स्थान पर शनिवार को पवित्र मानते हैं, मदिरा तथा तंबाकू से परहेज करते हैं और अपनी आमदनी का दशमांश चर्च को प्रदान करते हैं। उनका विश्वास है कि अंत में ईश्वर शैतान को, नरकदूतों को तथा मुक्ति से वंचित लोगों को नष्ट कर देगा। अमरीका में यह संप्रदाय विशेष रूप से सक्रिय है; वह मिशन क्षेत्रों में बहुत से अस्पतालों का संचालन करता है। दुनिया भर में उसके लगभग दस लाख सदस्य हैं।

सन् १८७२ ई. में चार्ल्स टी. रसल ने येहोवा साक्षी (Jehovah's witnesses) नामक संप्रदाय का प्रवर्तन किया। एडवेंटिस्ट विचारधारा से प्रभावित इस संप्रदाय की अपनी विशेषताएँ हैं, अर्थात् रोमन काथलिक चर्च का विरोध, आत्मा के अमरत्व, ईसा के ईश्वरत्व तथा त्रित्व के सिद्धांत का अस्वीकरण। यह संप्रदाय दुनिया भर में फैला हुआ है किंतु अमरीका में उसकी सदस्यता सर्वाधिक (२,८६,०००) है।

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