फुटबॉल विश्वकप का फाइनल बिल्कुल फाइनल जैसा रहा। जिस रोमांच की आशा लेकर दर्शक फाइनल मैच देखता है वो रोमांच इस फाइनल में देखने को मिला हालांकि पहले 78वें मिनट तक ऐसा कुछ नहीं था।
पहले 78वें मिनट तक मैच अर्जेंटीना की ओर झुका रहा और एक साधारण सा मैच खेला जा रहा। लेकिन मैच के 79वें मिनट से सबकुछ बदल गया। मैच ने जब करवट बदली तो मैस्सी के प्रशंसकों को भी सिर पकड़ने के लिए विवश होना पड़ा।
इसके बाद मैच में वो सबकुछ हुआ जिसे देखने के लिए हजारों दर्शक स्टेडियम पहुंचे थे, जिसे देखने के लिए विश्व भर के करोड़ों लोग अपने-अपने टीवी सेटों या मोबाइल से चिपके हुए थे।
78वें मिनट तक अर्जेंटीना की ओर झुके रहे मैच को फ्रांस ने 97वें सेकेंड के भीतर एमबापे के दो गोल (1 पेनल्टी + 1 मैदानी गोल) की सहायता से बराबर कर रोमांचक कर दिया।
साधारण सा चल रहा मैच यकायका ही रोमांचक होकर अतिरिक्त समय में पहुंच गया था।
107वें मिनट में एक अप्रत्याशित गोल कर मैस्सी ने अर्जेंटीना को 3-2 से आगे कर दिया था और यहां से अर्जेंटीना 36 वर्षों बाद विजेता बनता हुआ प्रतीत हो रहा था लेकिन नियति ने शायद कुछ और ही सोच रखा था।
बिलकुल अंतिम समय में अर्जेंटीना के गोलकीपर एमीलानो मार्टिनेज ने एक सुंदर बचाव करके अर्जेंटीना को हराने से बचाया और मैच को पेनल्टी शूटआउट में पहुंचा दिया। #FIFAWorldCup
पेनल्टी शूटआउट में एमबापे ने गोल दागकर फ्रांस को आगे कर दिया।
अर्जेंटीना के लिए #Messi ने निशाना साधा और गोल करके शूटआउट में स्कोर 1-1 कर दिया।
फ्रांस के लिए पेनल्टी लेने आए किंग्स्ले कोमन का गोल रोककर अर्जेंटीना के GK एमीलानो मार्टिनेज ने फ्रांस के खिलाड़ीयों पर दबाव बनाया।
पायोलो डिबाला, जो एक रणनीति के अंतर्गत 120वें मिनट में सब्सिट्यूट होकर मैदान में आए थे, ने गोल करके अर्जेंटीना को 2-1 से आगे कर दिया।
अब सारा दबाव फ्रांस के तुचोएमीनी पर था लेकिन वो इस दबाव को झेल नहीं पाए और गेंद को बाहर मार बैठे। तुचोएमीनी के इस मिस शॉट के साथ ही अर्जेंटीना के लिए विश्व विजेता बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका था।
चौथे नंबर पर अर्जेंटीना के लिए पेनल्टी लेने आए गोंजालो मोंटेली ने अर्जेंटीना को विश्व विजेता बनने वाला गोल किया।
अर्जेंटीना नया विश्वविजेता बन गया। 1986 के बाद पहली बार अर्जेंटीना विजेता बना। मैस्सी का सपना पूरा हुआ, #Messi𓃵 के करोड़ों प्रशंसकों का सपना पूरा हुआ। #FIFAWorldCup
36 वर्षों बाद अर्जेंटीना पुनः फुटबॉल का विश्व विजेता बना।
ये मात्र तीसरा अवसर रहा जब फुटबॉल विश्वकप फाइनल का निर्णय पेनल्टी शूटआउट से हुआ। अर्जेंटीना 2002 के बाद विश्वकप जीतने वाला पहला दक्षिण अमेरिकी देश बना। 2002 में ब्राजील ने विश्व कप जीता था।
2022 और 2018 के विश्वकप फाइनल में बराबार-बराबर 6 गोल हुए। 2018 के विश्वकप फाइनल में 6 गोल भले ही हुए थे मैच में रोमांच की कमी थी लेकिन 2022 के फाइनल ने रोमांच और नाटकीयता की सारी कमी पूरी कर दी।
विपक्ष ने अपने नाकार, निठल्लेपन के कारण चुनाव को मुद्दा विहीन बना दिया है?
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विपक्ष जानबूझकर जनता के मुद्दों को नहीं उठा रहा क्योंकि सत्ता मिलने पर वो भी जनता की समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहता?
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सबसे पहले तो ये बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि सत्तापक्ष के लिए ये स्थिति सबसे अनुकूल होती है जब चुनाव मुख्य मुद्दों से हटकर गैर जरूरी और मनगढ़ंत मुद्दों पर होने लगता है। आज स्थिति वही है विपक्षी कांग्रेस गठबंधन मुख्य मुद्दों को छोड़कर ऐसे मुद्दों पर मुखर है...
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....जो जनता से सीधे जुड़े हुए तो नहीं कहे जा सकते हैं।
एक बहुत ही आम वोटर की दृष्टि से देखे तो कम से कम ये चुनाव मुद्दा विहीन तो नहीं ही थे।
- महंगाई,
- बेरोजगारी
- शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता, इनकी लगातार ऊंची होती कीमतें,
- छोटे से छोटे स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार,
एक माता के कई संतानें थी। माता अपनी सभी संतानों से एक समान प्रेम करती थी। लेकिन फिर समय का ऐसा चक्र चला कि उस माता कि एक संतान उन्नति करने लगी। माता का प्रेम भी अपनी उस एक संतान के लिए अधिक होता चला गया।
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अन्य संतानों ने इस पर आपत्ति भी नहीं की और वे अपने उस भाई की उन्नति में और सहयोग करने लगे संभवतः इस सोच के साथ कि समय आने पर उनका भाई उनके लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करेगा।
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कुछ अपनी मेहनत, कुछ अपने भाईयों के अथक परिश्रम से उस भाई बहुत उन्नति की। ऐसी उन्नति की पहले विभिन्न राज्यों और फिर केंद्र की सत्ता उसे मिल गई।
आज के समय यदी आपको लगता है कि मीडिया सिर्फ मोदी सरकार का गुणगान कर रहा है और विपक्ष को नहीं दिखा रहा तो एक वो दौर भी याद करिए जब मीडिया में सिर्फ गुजरात दंगा ही छाया हुआ था। हर घटना को गुजरात दंगों से जोड़ दिया जाता था।
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2010 से अप्रैल 2014 तक ये क्रिया अपने चरम पर थी। आजकल यू-ट्यूब पर निष्पक्षता का चोला ओढ़कर बैठे क्रांतिकारी पत्रकार इस काम में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने को लालायित रहते थे।
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मोदी ही निंदा के पात्र थे,
मोदी ही आलोचना के पात्र थे,
गुजरात दंगा देश में हुआ एकमात्र दंगा था,
गुजरात दंगे क्यों हुए इस बात को छिपाया जाता था,
राजधर्म वाली क्लिप आधी काटकर चलाई जाती थी।
बहुत ही आम लोगों के लिए लिखा है। अगर आपकी नेताओं, पत्रकारों और अधिकारियों से सेटिंग वगैरह है तो इसे पढ़ने में अपना अमूल्य समय व्यर्थ मत किजिएगा।
#UPSC का परिणाम आया, प्रधानमंत्री से लेकर पत्रकारों तक ने और पत्रकारों से लेकर उन लोगों तक ने अभ्यर्थियों को बधाई, शुभकामनाएं दे डालीं जिनका उनसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं है।
नेताओं और पत्रकारों का तो समझ आता है लेकिन भाई तु न तीन में न तेरह में फिर तु किस बात पर खुश हो रहा है? तु किस बात की बधाई दे रहा है?
पास होने वालों ने समाज पर कौन सा उपकार कर दिया? या पद पर बैठने के बाद समाज के लिए करते क्या हैं ये लोग?
चीन ने अपने न आने का कारण गिना ही दिया, तुर्की व सऊदी न आने को लेकर कुछ बोले ही नहीं।
एक बात विशेष ध्यान रखिए, बात जब कश्मीर (मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र) की हो तो कुछ भी कूटनीतिक नहीं होता, सब एजेंडे के अनुसार ही होता है। इसलिए ये देश अपने एजेंडों की पूर्ति हेतु ही कश्मीर नहीं आए।
चीन :-
अव्वल तो भारत से नफरत के कारण उपजे पाकिस्तानी प्रेम के चलते चीन ने #G20Kashmir में आने से मना किया।दूसरा यदी चीन कश्मीर आता तो अक्साई-चिन पर उसका दावा कमजोर होता।
पाक के मुस्लिम एजेंडा को भी साधना था और अपनी विस्तारवादी नीति को भी। दोनों साधे चीन ने।
शिवराज मामा के नेतृत्व में सत्ताधारी हिंदू हितैषी कमल दल ने एक चुनाव के पहले एक योजना निकाली है "लाड़ली बहना योजना"।
इस योजना में महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए दिए जाएंगे। इस योजना का लाभ लेने के लिए बैंकों के बाहर, सरकारी कार्यालयों के बाहर माताओं की लंबी लाइनें लगी हुई हैं।
अब यहां से शुरू होता है असली खेल, लाड़ली बहना योजना की आड़ में खेला जा रहा तृप्तिकरण का असली खेल, उनके "कागज" बनाने का असली खेल।
"उनके इलाकों में" हिंदू हितैषी दल के नेता शिविर/कैंप लगा रहे हैं ताकि इस योजना के लिए "उनके" आवश्यक "कागज" (कागज को ध्यान में रखियेगा) बनाए जा सकें।