अमरूद
प्रति परोस का 100 ग्राम (3.5 औंस) | |
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ऊर्जा | 285 कि॰जूल (68 किलोकैलोरी) |
कार्बोहाइड्रेट | 14.32 g |
शर्करा | 8.92 g |
आहार रेशे | 5.4 g |
वसा | 0.95 g |
प्रोटीन | 2.55g |
विटामिन ए समरूप. | 31 μg (3%) |
- बीटा-कैरोटीन | 374 μg (3%) |
थायमिन(विटा.बी१) | 0.067 mg (5%) |
रिबोफ्लेविन(विटा.बी२) | 0.04 mg (3%) |
नायसिन(विटा.बी३) | 1.084 mg (7%) |
पैण्टोथेनिक अम्ल (बी५) | 0.451 mg (9%) |
विटामिन बी६ | 0.11 mg (8%) |
फोलेट (Vit. B9) | 49 μg (12%) |
विटामिन सी | 228.3 mg (381%) |
विटामिन के | 2.2 μg (2%) |
कैल्शियम | 18 mg (2%) |
लौह | 0.26 mg (2%) |
मैग्नेशियम | 22 mg (6%) |
मैंगनीज़ | 0.15 mg (8%) |
फास्फोरस | 40 mg (6%) |
पोटैशियम | 417 mg (9%) |
सोडियम | 2 mg (0%) |
जस्ता | 0.23 mg (2%) |
Lycopene | 5204 µg |
Link to USDA Database entry Percentages are relative to US recommendations for adults. Source: USDA Nutrient database |
अमरूद ( वानस्पतिक नाम : सीडियम ग्वायवा, प्रजाति सीडियम, जाति ग्वायवा, कुल मिटसी) एक फल देने वाला वृक्ष है। वैज्ञानिकों का विचार है कि अमरूद की उत्पति वेस्ट इंडीज़ से हुई है।
परिचय
[संपादित करें]भारत की जलवायु में अमरूद इतना घुल मिल गया है कि इसकी खेती यहाँ अत्यंत सफलतापूर्वक की जाती है। पता चलता है कि १७वीं शताब्दी में यह भारतवर्ष में लाया गया। अधिक सहिष्ण होने के कारण इसकी सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु में की जा सकती है। जाड़े की ऋतु में यह इतना अधिक तथा सस्ता प्राप्त होता है कि लोग इसे निर्धन जनता का एक प्रमुख फल कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है। इसमें विटामिन "सी' अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन "ए' तथा "बी' भी पाए जाते हैं। इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद की जेली तथा बर्फी (चीज) बनाई जाती है। इसे डिब्बों में बंद करके सुरक्षित भी रखा जा सकता है।
अमरूद के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त है। यह गरमी तथा पाला दोनों सहन कर सकता है। केवल छोटे पौधे ही पाले से प्रभावित होते हैं। यह हर प्रकार की मिट्टी में उपजाया जा सकता है, परंतु बलुई दोमट इसके लिए आदर्श मिट्टी है। भारत में अमरूद की प्रसिद्ध किस्में इलाहाबादी सफेदा, लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना तथा अमरूद सेब हैं।
अमरूद का प्रसारण अधिकतर बीज द्वारा किया जाता है, परंतु अच्छी जातियों के गुणों को सुरक्षित रखने के लिए आम की भाँति भेटकलम (इनाचिंग) द्वारा नए पौधे तेयार करना सबसे अच्छी रीति हैं। बीज मार्च या जुलाई में बो देना चाहिए। वानस्पातिक प्रसारण के लिए सबसे उतम समय जुलाई अगस्त है। पौधे २० फुट की दूरी पर लगाए जाते हैं। अच्छी उपज के लिए दो सिंचाई जाड़े में तथा तीन सिंचाई गर्मी के दिनों में करनी चाहिए। गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट, १५ गाड़ी प्रति एकड़ देने से अत्यंत लाभ होता है। स्वस्थ तथा सुंदर आकर का पेड़ प्राप्त करने के लिए आरंभ से ही डालियों की उचित छँटाई (प्रूनिग) करनी चाहिए। पुरानी डालियों में जो नई डालियाँ निकलती हैं उन्हीं पर फूल और फल आते हैं। वर्षा ऋतु में अमरूद के पेड़ फूलते हैं और जाड़े में फल प्राप्त होते हैं। एक पेड़ लगभग ३० वर्ष तक भली भाँति फल देता है और प्रति पेड़ ५००-६०० फल प्राप्त होते हैं। कीड़े तथा रोग से वृक्ष को साधारणात: कोई विशेष हानि नहीं होती।
अमरूद के अद्भुत गुण
[संपादित करें]अमरूद मीठा और स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ कई औषधीय गुणों से भरा हुआ है। सर्दियों में अमरूद खाने के फायदे ही फायदे हैं। दंत रोगों के लिए अमरूद रामबाण साबित होता है। अमरूद के पत्तों को चबाने से दांतों के कीड़ा और दांतों से सम्बंधित रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके अलावा भी ये कई औषधीय गुणो के लिए जाना जाता है।[1][2]
अमरुद का उत्पादन २०११ | |
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देश | १० लाख टन |
भारत
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१७.६
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चीन
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४.४
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थाईलैंड
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२.६
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पाकिस्तान
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१.८
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मेक्सिको
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१.६
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इण्डोनेशिया
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१.३
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ब्राज़ील
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१.२
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बांग्लादेश
|
१.०
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Source: WorldAtlas
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सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 जनवरी 2015.
- ↑ http://www.amarujala.com/feature/lifestyle/lifestyle-special/guava-health-benefits-winters/?page=0