बीसवीं सदी के आरंभ में जो राजनीतिक स्वतंत्रता की जो स्वीकृति थी, वही स्त्री की स्वतंत्रता की नहीं... more बीसवीं सदी के आरंभ में जो राजनीतिक स्वतंत्रता की जो स्वीकृति थी, वही स्त्री की स्वतंत्रता की नहीं थी। स्वयं अधिकांश स्त्रियों में इस बात को लेकर चेतना नहीं थी कि उनकी वर्तमान स्थिति में किसी प्रकार का सुधार या परिवर्तन संभव हो सकता है। लेकिन 1920 के बाद तक प्रखर चिंतनशील स्त्रियों का एक पूरा समूह देश के कोने-कोने में तैयार हो जाता है जो उस समय प्रकाशित सभी पत्र-पत्रिकाओं में स्त्री की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों पर टिप्पणी करने लगता है। महादेवी का प्रखर स्त्री-संबंधी चिंतन इसी चेतना की अगली कड़ी है
बीसवीं सदी के आरंभ में जो राजनीतिक स्वतंत्रता की जो स्वीकृति थी, वही स्त्री की स्वतंत्रता की नहीं... more बीसवीं सदी के आरंभ में जो राजनीतिक स्वतंत्रता की जो स्वीकृति थी, वही स्त्री की स्वतंत्रता की नहीं थी। स्वयं अधिकांश स्त्रियों में इस बात को लेकर चेतना नहीं थी कि उनकी वर्तमान स्थिति में किसी प्रकार का सुधार या परिवर्तन संभव हो सकता है। लेकिन 1920 के बाद तक प्रखर चिंतनशील स्त्रियों का एक पूरा समूह देश के कोने-कोने में तैयार हो जाता है जो उस समय प्रकाशित सभी पत्र-पत्रिकाओं में स्त्री की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों पर टिप्पणी करने लगता है। महादेवी का प्रखर स्त्री-संबंधी चिंतन इसी चेतना की अगली कड़ी है
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